आज हमारे देश में कई लोगो के मनमें एक प्रश्न है, इस प्रश्न को टीवी सीरियल और मूवी में भी पूछा जाता है।
"लड़कियों को शादी के बाद बिदाई देकर ससुराल क्यों भेजा जाता है और लड़को को क्यों नहीं ? "
भारत देशकी संस्कृति रामायण या महाभारत से शुरू नहीं हुई थी, यह संस्कृति उस से भी कई लाखो - करोडो सदिया पुरानी है। इस देश को अंग्रेज भी सोने चिड़िया कहते थे। यहाँ के भिक्षुक (भिखारी) भी दान किये बगैर खाना मुनासिब नहीं समझते थे.
जिस देश का भिक्षुकभी अपनी भूख की बजाय औरो की भूखकी चिंता करता हो, उस देशके माँ-बाप भला क्यों अपनी बेटी को बोज मानेंगे ?
तो फिर अपनी जान से प्यारी बेटी को बीदा करनेके इस रिवाज़ के पीछे क्या कारन है?
भारत देशकी आर्य संस्कृति जो की आत्मा और मोक्ष लक्षी (Motive) है, शरीर लक्षी नहीं। हमारी संस्कृति में स्री को बहोत मान और आदर दिया जाता था, उसे भोग की वस्तु या पैसे कमाने का साधन नहीं बल्कि देवी का दर्जा दिया जाता था। भारत देश के लोग जो की आत्मा लक्षि थे उनके लिए मोक्ष को प्राप्त करना ही उनका अंतिम और सर्वोत्तम लक्ष्य था। फिर चाहे वो बेटा हो या बेटी, माँ- बाप उनको शिक्षा-प्रशिक्षा उसी तरीके से देते थे जिस से के वे मोक्ष प्राप्ति के मार्ग पे आसानीसे चल सके।
मोक्ष प्राप्ति के लिए हमारे भीतर किसीभी वास्तु या व्यक्ति के प्रति मोह-लगाव या द्वेषकी भावना नहीं रहनी चाहिए, तभी मोक्ष का रास्ता आसन हो सक्ता है.
इन असंख्य सदियों के दौरान असंख्य राजा, रानी, मंत्री, सामन्त, सेनापति, नगरजन पुरुष-स्त्री बच्चे-बूढ़े, जिस किसीकी जब भी आत्मा जाग गई, तो वे हरा-भरा भी संसार त्याग करके साधु, मुनि, यति, या वनप्रस्थाश्रम के मार्ग पर चले गए। कोई ये नहीं चाहता था की उनकी मृत्यु घर में हो, और जीवन के अंतिम पड़ाव में वे मोक्ष की साधना से वंचित रहे।
औरतो के भीतर उनके घर के सदस्यों के प्रति अतिशय लगाव होता है। जिससे यूँही छूटना मुश्किल होता है, जो की मोक्ष मार्ग में बाधा रूप है।
इसी वजहसे अगर लड़की ससुराल चली जाये तो वो अपने आप इस नए जीवन में राग मुक्त होना ही उसे सही भी लगता है और वो अपनी आने वाली नई पीढ़ी को भी अपने खुद के अनुभवसे सिखाती थी "बेटा किसी भी वास्तु या व्यक्ति के प्रति अतिशय लगाव अच्छा नहीं वो तुम्हारे मोक्ष लक्ष्य में बाधा बनेगा, और तुम वस्तु स्थिति का सही ज्ञान नहीं कर पाओगे, जिस से तुम्हारा मद-अहँकार-क्रोध तुम्हे गलत दिशा में ले जायेंगे"
दूसरा कारण ये था की घर-गृहस्ति को सम्भाल ने के लिए एक माध्यस्थ व्यक्ति का होना आवश्यक है, पिता के घर से बिदा हो जाने पर नए घर में हर नई व्यक्ति के साथ मध्यस्थ भाव ( किसी के प्रति भेद - भाव न होना ) होता है, जिस वजह से वो एक सही निर्णय आसानी से ले सक्ती है। औरतों के भीतर एक शक्ति होती है जिन्हे आज लोग 6th sense के रूप में जानते है, वे किसी भी व्यक्ति के पैरों की आहट से समज शक्ति थी की सामने वाली व्यक्ति क्या सोचती है। गृहस्ती सँभालने के लिए जो कुन्हे शक्ति औरतों में होती है वो पुरुषो में नहीं होती।
इसीलिए हम स्री को सिर्फ अबला के रूप में ही नहीं, नारी शक्ति यानि उनकी आत्म-शक्ति के रूप में भी पूजते है। जो स्री खुद के आत्मा को ध्यान में रखके केवल मोक्ष का लक्ष्य रख्ती है, उनकी पूजा-रक्षा स्वयं भ्रह्म देवलोक के देव भी करते है, और जो स्री आत्मा को भूल गई उनकी शक्ति स्वयं उनकी आत्मा के लिए और दुसरो के लिए भी व्यर्थ और विनाशक है।
"लड़कियों को शादी के बाद बिदाई देकर ससुराल क्यों भेजा जाता है और लड़को को क्यों नहीं ? "
जिसने भी ये रिवाज़ बनाया क्या वे माँ-बाप अपनी बेटी को बोज रूप मानते थे?
भारत देशकी संस्कृति रामायण या महाभारत से शुरू नहीं हुई थी, यह संस्कृति उस से भी कई लाखो - करोडो सदिया पुरानी है। इस देश को अंग्रेज भी सोने चिड़िया कहते थे। यहाँ के भिक्षुक (भिखारी) भी दान किये बगैर खाना मुनासिब नहीं समझते थे.जिस देश का भिक्षुकभी अपनी भूख की बजाय औरो की भूखकी चिंता करता हो, उस देशके माँ-बाप भला क्यों अपनी बेटी को बोज मानेंगे ?
तो फिर अपनी जान से प्यारी बेटी को बीदा करनेके इस रिवाज़ के पीछे क्या कारन है?
भारत देशकी आर्य संस्कृति जो की आत्मा और मोक्ष लक्षी (Motive) है, शरीर लक्षी नहीं। हमारी संस्कृति में स्री को बहोत मान और आदर दिया जाता था, उसे भोग की वस्तु या पैसे कमाने का साधन नहीं बल्कि देवी का दर्जा दिया जाता था। भारत देश के लोग जो की आत्मा लक्षि थे उनके लिए मोक्ष को प्राप्त करना ही उनका अंतिम और सर्वोत्तम लक्ष्य था। फिर चाहे वो बेटा हो या बेटी, माँ- बाप उनको शिक्षा-प्रशिक्षा उसी तरीके से देते थे जिस से के वे मोक्ष प्राप्ति के मार्ग पे आसानीसे चल सके।
मोक्ष प्राप्ति के लिए हमारे भीतर किसीभी वास्तु या व्यक्ति के प्रति मोह-लगाव या द्वेषकी भावना नहीं रहनी चाहिए, तभी मोक्ष का रास्ता आसन हो सक्ता है.
इन असंख्य सदियों के दौरान असंख्य राजा, रानी, मंत्री, सामन्त, सेनापति, नगरजन पुरुष-स्त्री बच्चे-बूढ़े, जिस किसीकी जब भी आत्मा जाग गई, तो वे हरा-भरा भी संसार त्याग करके साधु, मुनि, यति, या वनप्रस्थाश्रम के मार्ग पर चले गए। कोई ये नहीं चाहता था की उनकी मृत्यु घर में हो, और जीवन के अंतिम पड़ाव में वे मोक्ष की साधना से वंचित रहे।
औरतो के भीतर उनके घर के सदस्यों के प्रति अतिशय लगाव होता है। जिससे यूँही छूटना मुश्किल होता है, जो की मोक्ष मार्ग में बाधा रूप है।
इसी वजहसे अगर लड़की ससुराल चली जाये तो वो अपने आप इस नए जीवन में राग मुक्त होना ही उसे सही भी लगता है और वो अपनी आने वाली नई पीढ़ी को भी अपने खुद के अनुभवसे सिखाती थी "बेटा किसी भी वास्तु या व्यक्ति के प्रति अतिशय लगाव अच्छा नहीं वो तुम्हारे मोक्ष लक्ष्य में बाधा बनेगा, और तुम वस्तु स्थिति का सही ज्ञान नहीं कर पाओगे, जिस से तुम्हारा मद-अहँकार-क्रोध तुम्हे गलत दिशा में ले जायेंगे"
दूसरा कारण ये था की घर-गृहस्ति को सम्भाल ने के लिए एक माध्यस्थ व्यक्ति का होना आवश्यक है, पिता के घर से बिदा हो जाने पर नए घर में हर नई व्यक्ति के साथ मध्यस्थ भाव ( किसी के प्रति भेद - भाव न होना ) होता है, जिस वजह से वो एक सही निर्णय आसानी से ले सक्ती है। औरतों के भीतर एक शक्ति होती है जिन्हे आज लोग 6th sense के रूप में जानते है, वे किसी भी व्यक्ति के पैरों की आहट से समज शक्ति थी की सामने वाली व्यक्ति क्या सोचती है। गृहस्ती सँभालने के लिए जो कुन्हे शक्ति औरतों में होती है वो पुरुषो में नहीं होती।
इसीलिए हम स्री को सिर्फ अबला के रूप में ही नहीं, नारी शक्ति यानि उनकी आत्म-शक्ति के रूप में भी पूजते है। जो स्री खुद के आत्मा को ध्यान में रखके केवल मोक्ष का लक्ष्य रख्ती है, उनकी पूजा-रक्षा स्वयं भ्रह्म देवलोक के देव भी करते है, और जो स्री आत्मा को भूल गई उनकी शक्ति स्वयं उनकी आत्मा के लिए और दुसरो के लिए भी व्यर्थ और विनाशक है।
इसीलिए ससुराल जाना श्राप नहीं वरदान है।
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